Friday, January 19, 2018

आगे ख़्वाबों के क्या नज़ारे थे

एक से एक ख़ूब सारे थे
दिल हमारा था और आरे थे

बात इतने पे आके ठहरी है
तुम हमारे के हम तुम्हारे थे

ख़ूब उफ़नते फड़कते सागर में
बेड़े हम भी कभी उतारे थे

हमको देखे भी पर न आया ख़याल
यह के हम उनको जी से प्यारे थे

क्यूँ न किस्मत सँवार पाए तेरी
जबके हम टूटे हुए तारे थे

बनके शोला भड़क उठे हैं सभी
जी में जो इश्क़ के शरारे थे

क्या क्या औ तौर किस कहें ग़ाफ़िल
आगे ख़्वाबों के क्या नज़ारे थे

-‘ग़ाफ़िल’

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