मैं फ़क़ीर अलमस्त क्या लेना मुझे संसार से
कोई दुत्कारे पुकारे या के कोई प्यार से
ख़ार भी हैं गुल भी हैं दोनों का है रुत्बा मगर
किसको देखा लौ लगाते गुलसिताँ में ख़ार से
बस ज़रा ठहरो मुझे भी ग़ालिबो तुम सबमें आज
देखना है कौन बचता है नज़र के वार से
जल रहा था शह्र मैं पूछा के यह कैसे हुआ
सब कहे भड़की है आतिश तेरे हुस्ने यार से
यूँ तग़ाफ़ुल से सुक़ूनो अम्न जाता है मेरा
है क़रार आता मुझे ग़ाफ़िल तेरी तक़रार से
-‘ग़ाफ़िल’
कोई दुत्कारे पुकारे या के कोई प्यार से
ख़ार भी हैं गुल भी हैं दोनों का है रुत्बा मगर
किसको देखा लौ लगाते गुलसिताँ में ख़ार से
बस ज़रा ठहरो मुझे भी ग़ालिबो तुम सबमें आज
देखना है कौन बचता है नज़र के वार से
जल रहा था शह्र मैं पूछा के यह कैसे हुआ
सब कहे भड़की है आतिश तेरे हुस्ने यार से
यूँ तग़ाफ़ुल से सुक़ूनो अम्न जाता है मेरा
है क़रार आता मुझे ग़ाफ़िल तेरी तक़रार से
-‘ग़ाफ़िल’
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