जी गँवा बैठा है कहता क्या हुआ
किस क़दर है आदमी बहका हुआ
चाँद जब निकला न था तो वो था हाल
और जब निकला तो हो हल्ला हुआ
उसको तो मालूम होना चाहिए
रात भर जिसका यहाँ चर्चा हुआ
ज़ख़्म देना है चला तीरे नज़र
ख़ंजरे दस्त अब गया किस्सा हुआ
हुस्न के लासे में चिपका हर बशर
या हुआ ग़ाफ़िल के दीवाना हुआ
-‘ग़ाफ़िल’
किस क़दर है आदमी बहका हुआ
चाँद जब निकला न था तो वो था हाल
और जब निकला तो हो हल्ला हुआ
उसको तो मालूम होना चाहिए
रात भर जिसका यहाँ चर्चा हुआ
ज़ख़्म देना है चला तीरे नज़र
ख़ंजरे दस्त अब गया किस्सा हुआ
हुस्न के लासे में चिपका हर बशर
या हुआ ग़ाफ़िल के दीवाना हुआ
-‘ग़ाफ़िल’
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