जो गया और कहीं और फिसल जाएगा
ये मेरा दिल है तेरे पास भी पल जाएगा
क्यूँ मनाने की मैं तद्बीर ही कुछ और करूँ
इक तबस्सुम पे तू वैसे भी पिघल जाएगा
चाँद के रू से तो हटने दे इन अब्रों का नक़ाब
वह भी अरमान जो बाकी है निकल जाएगा
गिर चुका है जो उसे रब ही उठाए आकर
गिर रहा है जो सँभाले से सँभल जाएगा
तंज़ कर ले ऐ ज़माने तू अभी मौका है
आज भर को ही है ग़ाफ़िल भी ये कल जाएगा
-‘ग़ाफ़िल’
ये मेरा दिल है तेरे पास भी पल जाएगा
क्यूँ मनाने की मैं तद्बीर ही कुछ और करूँ
इक तबस्सुम पे तू वैसे भी पिघल जाएगा
चाँद के रू से तो हटने दे इन अब्रों का नक़ाब
वह भी अरमान जो बाकी है निकल जाएगा
गिर चुका है जो उसे रब ही उठाए आकर
गिर रहा है जो सँभाले से सँभल जाएगा
तंज़ कर ले ऐ ज़माने तू अभी मौका है
आज भर को ही है ग़ाफ़िल भी ये कल जाएगा
-‘ग़ाफ़िल’
बहुत खूब ...लाजवाब 👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया
Deleteबेहतरीन पंक्तियां
ReplyDeleteआपका मेरे ब्लॉग पर ह्क़र्दिक स्वागत है
https://bikhareakshar.blogspot.com/
http://kbsnco.blogspot.com/
शुक्रिया जनाब
Delete