इस ग़ज़ल पर नज़र फिराओगे
नाचोगे झूम झूम गाओगे
है कमाल अपनी अपनी चाहत का
जैसे चाहोगे मुझको पाओगे
भूल पाए नहीं हो वस्ल अभी
हिज़्र क्या ख़ाक तुम भुलाओगे
क्या छुपेगा तुम्हारा इश्क़ मगर
तुम तो बस तुम हो तुम छुपाओगे
मेरे क़ातिल मेरे जनाज़े में
मुझको मालूम है तुम आओगे
कोई भी पा नहीं सका अब तक
चाँद क्या तुम मुझे दिलाओगे
हुस्न वालों से गुफ़्तगू भी तो यूँ
ग़ाफ़िल अब जान भी गँवाओगे
-‘ग़ाफ़िल’
नाचोगे झूम झूम गाओगे
है कमाल अपनी अपनी चाहत का
जैसे चाहोगे मुझको पाओगे
भूल पाए नहीं हो वस्ल अभी
हिज़्र क्या ख़ाक तुम भुलाओगे
क्या छुपेगा तुम्हारा इश्क़ मगर
तुम तो बस तुम हो तुम छुपाओगे
मेरे क़ातिल मेरे जनाज़े में
मुझको मालूम है तुम आओगे
कोई भी पा नहीं सका अब तक
चाँद क्या तुम मुझे दिलाओगे
हुस्न वालों से गुफ़्तगू भी तो यूँ
ग़ाफ़िल अब जान भी गँवाओगे
-‘ग़ाफ़िल’
No comments:
Post a Comment