Wednesday, July 18, 2018

है क़रार आता मुझे ग़ाफ़िल तेरी तक़रार से

मैं फ़क़ीर अलमस्त क्या लेना मुझे संसार से
कोई दुत्कारे पुकारे या के कोई प्यार से

ख़ार भी हैं गुल भी हैं दोनों का है रुत्‍बा मगर
किसको देखा लौ लगाते गुलसिताँ में ख़ार से

बस ज़रा ठहरो मुझे भी ग़ालिबो तुम सबमें आज
देखना है कौन बचता है नज़र के वार से

जल रहा था शह्र मैं पूछा के यह कैसे हुआ
सब कहे भड़की है आतिश तेरे हुस्ने यार से

यूँ तग़ाफ़ुल से सुक़ूनो अम्न जाता है मेरा
है क़रार आता मुझे ग़ाफ़िल तेरी तक़रार से

-‘ग़ाफ़िल’

No comments:

Post a Comment