Wednesday, July 25, 2018

ग़ाफ़िल अब जान भी गँवाओगे

इस ग़ज़ल पर नज़र फिराओगे
नाचोगे झूम झूम गाओगे

है कमाल अपनी अपनी चाहत का
जैसे चाहोगे मुझको पाओगे

भूल पाए नहीं हो वस्ल अभी
हिज़्र क्या ख़ाक तुम भुलाओगे

क्या छुपेगा तुम्हारा इश्क़ मगर
तुम तो बस तुम हो तुम छुपाओगे

मेरे क़ातिल मेरे जनाज़े में
मुझको मालूम है तुम आओगे

कोई भी पा नहीं सका अब तक
चाँद क्या तुम मुझे दिलाओगे

हुस्न वालों से गुफ़्तगू भी तो यूँ
ग़ाफ़िल अब जान भी गँवाओगे

-‘ग़ाफ़िल’

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