Sunday, July 29, 2018

गिर रहा है जो सँभाले से सँभल जाएगा

जो गया और कहीं और फिसल जाएगा
ये मेरा दिल है तेरे पास भी पल जाएगा

क्यूँ मनाने की मैं तद्बीर ही कुछ और करूँ
इक तबस्सुम पे तू वैसे भी पिघल जाएगा

चाँद के रू से तो हटने दे इन अब्रों का नक़ाब
वह भी अरमान जो बाकी है निकल जाएगा

गिर चुका है जो उसे रब ही उठाए आकर
गिर रहा है जो सँभाले से सँभल जाएगा

तंज़ कर ले ऐ ज़माने तू अभी मौका है
आज भर को ही है ग़ाफ़िल भी ये कल जाएगा

-‘ग़ाफ़िल’

4 comments:

  1. बहुत खूब ...लाजवाब 👌👌

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  2. बेहतरीन पंक्तियां

    आपका मेरे ब्लॉग पर ह्क़र्दिक स्वागत है
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