किसे फ़ुर्सत मिली अपने ग़मों से
सभी हारे हुए हैं आदतों से
हक़ीक़त है कि उल्फ़त ने सिखाया
हमें दो चार होना हादिसों से
एक क़त्आ-
तिरे घर की दिलाएं याद हमको
नहीं शिक़्वा हमें है आबलों से
उन्हीं यादों में उलझे हैं, सुक़ूँ है
हम उकताए हैं अक़्सर राहतों से
और अश्आर-
हमारे बीच क्यूँ ये फ़ासिले हैं
बहुत डर लग रहा इन फ़ासिलों से
यूँ छलके जाम है आँखों का तेरे
छलकती है तबस्सुम जूँ लबों से
लगे है चाँद तब प्यारा बहुत ही
हमें जब झाँकता है बादलों से
हमेशा मात खाई दोस्ती में
जो ग़ाफ़िल था न हारा दुश्मनों से
-‘ग़ाफ़िल’
सभी हारे हुए हैं आदतों से
हक़ीक़त है कि उल्फ़त ने सिखाया
हमें दो चार होना हादिसों से
एक क़त्आ-
तिरे घर की दिलाएं याद हमको
नहीं शिक़्वा हमें है आबलों से
उन्हीं यादों में उलझे हैं, सुक़ूँ है
हम उकताए हैं अक़्सर राहतों से
और अश्आर-
हमारे बीच क्यूँ ये फ़ासिले हैं
बहुत डर लग रहा इन फ़ासिलों से
यूँ छलके जाम है आँखों का तेरे
छलकती है तबस्सुम जूँ लबों से
लगे है चाँद तब प्यारा बहुत ही
हमें जब झाँकता है बादलों से
हमेशा मात खाई दोस्ती में
जो ग़ाफ़िल था न हारा दुश्मनों से
-‘ग़ाफ़िल’
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, संत कबीर के आधुनिक दोहे - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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