जब तुम्हारी गली में आए हैं
यार पत्थर हज़ार बरसे हैं
हुस्न वालों से मात खा खाकर
इश्क़ में हम कमाल करते हैं
शेखियाँ क्यूँ बघारते हो जब
हम तुम्हारे क़रीब होते हैं
और दीदार को रहा भी क्या
मौत का रक्स ख़ूब देखे हैं
आज वो भी लगा रहे तुह्मत
नाज़ जिनके बहुत उठाए हैं
-‘ग़ाफ़िल’
यार पत्थर हज़ार बरसे हैं
हुस्न वालों से मात खा खाकर
इश्क़ में हम कमाल करते हैं
शेखियाँ क्यूँ बघारते हो जब
हम तुम्हारे क़रीब होते हैं
और दीदार को रहा भी क्या
मौत का रक्स ख़ूब देखे हैं
आज वो भी लगा रहे तुह्मत
नाज़ जिनके बहुत उठाए हैं
वो सवाल इश्क़ का था ग़ाफ़िल जी
आप जिसका जवाब भूले हैं
-‘ग़ाफ़िल’
बहुत खूब
ReplyDeleteमन को छूती गजल