उम्र भर हादिसों से गुज़रते रहे
इसलिए दूर हम आप सब से रहे
मछलियाँ हो गयीं अब सयानी बहुत
सब फिसलती रहीं हम पकड़ते रहे
दिल को तोड़ा है सबने बड़े शौक से
आप भी क्यूँ हिमाक़त ये करते रहे
वक़्त पर हो लिए सब रक़ीबों के सँग
शह्र में यूँ हमारे दीवाने रहे
याद है हर गुज़िश्त: शबे हिज़्र, हम
जिसमें ज़िन्दा रहे पर मरे से रहे
एक ग़ाफ़िल ने ऐसा भी क्या कह दिया
अब तलक आप मुँह जो फुलाए रहे
-‘ग़ाफ़िल’
इसलिए दूर हम आप सब से रहे
मछलियाँ हो गयीं अब सयानी बहुत
सब फिसलती रहीं हम पकड़ते रहे
दिल को तोड़ा है सबने बड़े शौक से
आप भी क्यूँ हिमाक़त ये करते रहे
वक़्त पर हो लिए सब रक़ीबों के सँग
शह्र में यूँ हमारे दीवाने रहे
याद है हर गुज़िश्त: शबे हिज़्र, हम
जिसमें ज़िन्दा रहे पर मरे से रहे
एक ग़ाफ़िल ने ऐसा भी क्या कह दिया
अब तलक आप मुँह जो फुलाए रहे
-‘ग़ाफ़िल’
वाह बहुत खूब -------
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
सादर
ज़ुरूर महाशय क्यूं नहीं आभार आपका
Deleteआभार आदरणीया
ReplyDeleteWah wah!
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