Monday, October 26, 2015

इसलिए दूर हम आप सब से रहे

उम्र भर हादिसों से गुज़रते रहे
इसलिए दूर हम आप सब से रहे

मछलियाँ हो गयीं अब सयानी बहुत
सब फिसलती रहीं हम पकड़ते रहे

दिल को तोड़ा है सबने बड़े शौक से
आप भी क्यूँ हिमाक़त ये करते रहे

वक़्त पर हो लिए सब रक़ीबों के सँग
शह्र में यूँ हमारे दीवाने रहे

याद है हर गुज़िश्त: शबे हिज़्र, हम
जिसमें ज़िन्दा रहे पर मरे से रहे

एक ग़ाफ़िल ने ऐसा भी क्या कह दिया
अब तलक आप मुँह जो फुलाए रहे

-‘ग़ाफ़िल’

4 comments:

  1. वाह बहुत खूब -------
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    सादर

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    1. ज़ुरूर महाशय क्‍यूं नहीं आभार आपका

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