212 212 212 212
एक अहदे वफ़ा अब हुआ चाहिए
साथ हमको सनम आपका चाहिए
अब तलक ख़ूब लू के थपेड़े सहे
चाहिए बस हमें अब सबा चाहिए
ज़ह्र से हों भरी या के शीरींअदा
आपसे बात का सिलसिला चाहिए
ज़ीनते बज़्म कायम रहे इसलिए
आपके रुख़ से पर्दा हटा चाहिए
इश्क़ के हर्फ़ से हम हैं अंजान पर
आशिक़ों का हमें मर्तबा चाहिए
हुस्न रूठा तो क्या इश्क़ रुश्वा न हो
बस यही आपकी इक दुआ चाहिए
क्या थिरकने लगे यह हमारी ग़ज़ल
इक दफा आपका मर्हबा चाहिए
कुछ मिला तो भला, नफ़्रतें ही सही
एक ग़ाफ़िल को अब और क्या चाहिए
-‘ग़ाफ़िल’
एक अहदे वफ़ा अब हुआ चाहिए
साथ हमको सनम आपका चाहिए
अब तलक ख़ूब लू के थपेड़े सहे
चाहिए बस हमें अब सबा चाहिए
ज़ह्र से हों भरी या के शीरींअदा
आपसे बात का सिलसिला चाहिए
ज़ीनते बज़्म कायम रहे इसलिए
आपके रुख़ से पर्दा हटा चाहिए
इश्क़ के हर्फ़ से हम हैं अंजान पर
आशिक़ों का हमें मर्तबा चाहिए
हुस्न रूठा तो क्या इश्क़ रुश्वा न हो
बस यही आपकी इक दुआ चाहिए
क्या थिरकने लगे यह हमारी ग़ज़ल
इक दफा आपका मर्हबा चाहिए
कुछ मिला तो भला, नफ़्रतें ही सही
एक ग़ाफ़िल को अब और क्या चाहिए
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 13 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार अग्राल साहेब
Deleteवाह !
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