दौरे रफ़्तार में तू जब भी जिधर जाएगा
ख़ौफ़ का एक तमाशा सा उधर जाएगा
अज़्नबी खाये है वैसे भी सफ़र में ठोकर
क्या क़सर हो कि तू पीकर भी अगर जाएगा
हुस्न धोखा है, नहीं इस पे भरोसा करना
वह जताएगा न जाएगा मगर जाएगा
एक आवाज़ सी आती है मिरे अन्दर से
इश्क़ वह शै है करेगा तो सँवर जाएगा
फलसफा ज़ीस्त का चलना है अँधेरे में जूँ
गरचे हिम्मत भी गयी डर के ही मर जाएगा
राह फिर रोक न ले शोख़ तमन्ना ग़ाफ़िल
सोच गर यूँ ही हुआ तो तू किधर जाएगा
-‘ग़ाफ़िल’
ख़ौफ़ का एक तमाशा सा उधर जाएगा
अज़्नबी खाये है वैसे भी सफ़र में ठोकर
क्या क़सर हो कि तू पीकर भी अगर जाएगा
हुस्न धोखा है, नहीं इस पे भरोसा करना
वह जताएगा न जाएगा मगर जाएगा
एक आवाज़ सी आती है मिरे अन्दर से
इश्क़ वह शै है करेगा तो सँवर जाएगा
फलसफा ज़ीस्त का चलना है अँधेरे में जूँ
गरचे हिम्मत भी गयी डर के ही मर जाएगा
राह फिर रोक न ले शोख़ तमन्ना ग़ाफ़िल
सोच गर यूँ ही हुआ तो तू किधर जाएगा
-‘ग़ाफ़िल’
वाह वाह लाजवाब गज़ल
ReplyDeleteआभार रचना जी
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (27-08-2015) को "धूल से गंदे नहीं होते फूल" (चर्चा अंक-2080) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी
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