अब सिवा आपके आश्ना कौन है
आप जैसा मुझे सोचता कौन है
साथ देने को राज़ी हज़ारों हैं पर
मैं न जानू के वा’दावफ़ा कौन है
कर रहे हैं नुमाइश सरेआम सब
जानकर भी के दिल लूटता कौन है
याद में डूबने का है दावा महज़
वाक़ई याद में डूबता कौन है
आदमी को ख़ुदा मिल तो जाये मगर
आजकल टूटकर चाहता कौन है
मैं हूँ ग़ाफ़िल नहीं इल्म मुझको ज़रा
कौन है तल्ख़ औ चटपटा कौन है
-‘ग़ाफ़िल’
आप जैसा मुझे सोचता कौन है
साथ देने को राज़ी हज़ारों हैं पर
मैं न जानू के वा’दावफ़ा कौन है
कर रहे हैं नुमाइश सरेआम सब
जानकर भी के दिल लूटता कौन है
याद में डूबने का है दावा महज़
वाक़ई याद में डूबता कौन है
आदमी को ख़ुदा मिल तो जाये मगर
आजकल टूटकर चाहता कौन है
मैं हूँ ग़ाफ़िल नहीं इल्म मुझको ज़रा
कौन है तल्ख़ औ चटपटा कौन है
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-08-2015) को "देखता हूँ ज़िंदगी को" (चर्चा अंक-2078) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया
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