हमारे जी में कोई ख़्वाब पलना भी ज़ुरूरी था
दिले नादान को उस पर मचलना भी ज़ुरूरी था
किसी की शोख़ियों ने क्या ग़ज़ब का क़ह्र बरपाया
ज़रर होने से पहले ही सँभलना भी ज़ुरूरी था
ये तन्हाई हमारी पूछती रहती है अक्सर के
जो अब तक साथ थे क्या उनका टलना भी ज़ुरूरी था
इरादा तो ज़ुरूरी था ही मंज़िल तक पहुँचने को
हमें काँटों भरी राहों पे चलना भी ज़ुरूरी था
ज़माने का नया अंदाज़, हम रुस्वा न हो जाएँ
इसी बाइस नये फ़ैशन में ढलना भी ज़ुरूरी था
रहे पुरख़ार पर चलता रहा ग़ाफ़िल ज़माने से
ज़रा आराम आए रह बदलना भी ज़ुरूरी था
-‘ग़ाफ़िल’
किसी की शोख़ियों ने क्या ग़ज़ब का क़ह्र बरपाया
ReplyDeleteज़रर होने से पहले ही सँभलना भी ज़ुरूरी था
ये तन्हाई हमारी पूछती रहती है अक्सर के
जो अब तक साथ थे क्या उनका टलना भी ज़ुरूरी था
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति
शुक्रिया आदरणीय सक्सेना जी
Deleteआभार राजेन्द्र जी
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