Wednesday, August 12, 2015

हमें काँटों भरी राहों पे चलना भी ज़ुरूरी था

हमारे जी में कोई ख़्वाब पलना भी ज़ुरूरी था
दिले नादान को उस पर मचलना भी ज़ुरूरी था

किसी की शोख़ियों ने क्या ग़ज़ब का क़ह्र बरपाया
ज़रर होने से पहले ही सँभलना भी ज़ुरूरी था

ये तन्हाई हमारी पूछती रहती है अक्सर के
जो अब तक साथ थे क्या उनका टलना भी ज़ुरूरी था

इरादा तो ज़ुरूरी था ही मंज़िल तक पहुँचने को
हमें काँटों भरी राहों पे चलना भी ज़ुरूरी था

ज़माने का नया अंदाज़, हम रुस्वा न हो जाएँ
इसी बाइस नये फ़ैशन में ढलना भी ज़ुरूरी था

रहे पुरख़ार पर चलता रहा ग़ाफ़िल ज़माने से
ज़रा आराम आए रह बदलना भी ज़ुरूरी था

-‘ग़ाफ़िल’

3 comments:

  1. किसी की शोख़ियों ने क्या ग़ज़ब का क़ह्र बरपाया
    ज़रर होने से पहले ही सँभलना भी ज़ुरूरी था

    ये तन्हाई हमारी पूछती रहती है अक्सर के
    जो अब तक साथ थे क्या उनका टलना भी ज़ुरूरी था
    बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति

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