इक मुसाफ़िर राह का माना हुआ
आपके कूचे में बेगाना हुआ
चल रही थीं आँधियाँ बिखरे थे फूल
आज मेरा गुलसिताँ जाना हुआ
कैद हो जाना है भौंरे का नसीब
फिर कमलनी का वो दीवाना हुआ
इक शज़र से बेल लिपटी देखकर
क्या कहूँ क्या उनका शर्माना हुआ
क्या मचलती है नदी इक बारगी
जब किसी सागर से मिल जाना हुआ
हुस्न क्या है एक है यह भी सवाल
सच बताना क्या बता पाना हुआ
चाँद आया छत पे तो मचला है जी
क्या हसीं क़ुद्रत का नज़राना हुआ
एक ग़ाफ़िल का किया ख़ानाख़राब
आपका यह हुस्न मैखाना हुआ
-‘ग़ाफ़िल’
आपके कूचे में बेगाना हुआ
चल रही थीं आँधियाँ बिखरे थे फूल
आज मेरा गुलसिताँ जाना हुआ
कैद हो जाना है भौंरे का नसीब
फिर कमलनी का वो दीवाना हुआ
इक शज़र से बेल लिपटी देखकर
क्या कहूँ क्या उनका शर्माना हुआ
क्या मचलती है नदी इक बारगी
जब किसी सागर से मिल जाना हुआ
हुस्न क्या है एक है यह भी सवाल
सच बताना क्या बता पाना हुआ
चाँद आया छत पे तो मचला है जी
क्या हसीं क़ुद्रत का नज़राना हुआ
एक ग़ाफ़िल का किया ख़ानाख़राब
आपका यह हुस्न मैखाना हुआ
-‘ग़ाफ़िल’
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