Tuesday, August 04, 2015

ज़ुरूरत है मुहब्बत का तराना गुनगुनाने की

1222 1222 1222 1222

ज़ुरूरत है मुहब्बत का तराना गुनगुनाने की
हर इक सोए हुए जज़्बात को फिर से जगाने की

बहुत बेताब हो जाता हूँ नख़रों से तिरे हमदम
मुझे अब मार डालेगी अदा ये रूठ जाने की

मैं कितनी बार बोला के तुझी से प्यार है जाना
तुझी से प्यार है कहने को तू कितने बहाने की

जो इतनी गर्मजोशी है बहुत मुमकिन है यारों ने
नयी तरक़ीब सोची है मुझे फिर से फसाने की

तुझे मालूम क्या? क्या-क्या नहीं ताने सहा हूँ मैं
मगर आदत नहीं जाती है अब पीने-पिलाने की

हुई शादी तो बेताबी भी क्यूँ जाती रही ग़ाफ़िल
वही जी! चाँद तारों से कोई दामन सजाने की

-‘ग़ाफ़िल’

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 06 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. बहुत बेताब हो जाता हूँ नख़रों से तिरे हमदम
    मुझे अब मार डालेगी अदा ये रूठ जाने की
    बहुत खूब, अच्छी ग़ज़ल

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