1222 1222 1222 1222
ज़ुरूरत है मुहब्बत का तराना गुनगुनाने की
हर इक सोए हुए जज़्बात को फिर से जगाने की
बहुत बेताब हो जाता हूँ नख़रों से तिरे हमदम
मुझे अब मार डालेगी अदा ये रूठ जाने की
मैं कितनी बार बोला के तुझी से प्यार है जाना
तुझी से प्यार है कहने को तू कितने बहाने की
जो इतनी गर्मजोशी है बहुत मुमकिन है यारों ने
नयी तरक़ीब सोची है मुझे फिर से फसाने की
तुझे मालूम क्या? क्या-क्या नहीं ताने सहा हूँ मैं
मगर आदत नहीं जाती है अब पीने-पिलाने की
हुई शादी तो बेताबी भी क्यूँ जाती रही ग़ाफ़िल
वही जी! चाँद तारों से कोई दामन सजाने की
-‘ग़ाफ़िल’
ज़ुरूरत है मुहब्बत का तराना गुनगुनाने की
हर इक सोए हुए जज़्बात को फिर से जगाने की
बहुत बेताब हो जाता हूँ नख़रों से तिरे हमदम
मुझे अब मार डालेगी अदा ये रूठ जाने की
मैं कितनी बार बोला के तुझी से प्यार है जाना
तुझी से प्यार है कहने को तू कितने बहाने की
जो इतनी गर्मजोशी है बहुत मुमकिन है यारों ने
नयी तरक़ीब सोची है मुझे फिर से फसाने की
तुझे मालूम क्या? क्या-क्या नहीं ताने सहा हूँ मैं
मगर आदत नहीं जाती है अब पीने-पिलाने की
हुई शादी तो बेताबी भी क्यूँ जाती रही ग़ाफ़िल
वही जी! चाँद तारों से कोई दामन सजाने की
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 06 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार दिग्विजय जी
Deleteबहुत बेताब हो जाता हूँ नख़रों से तिरे हमदम
ReplyDeleteमुझे अब मार डालेगी अदा ये रूठ जाने की
बहुत खूब, अच्छी ग़ज़ल
आभार हिमकर श्याम जी
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