वो हमीं को पहाड़ा पढ़ाते रहे
हम जिन्हें अपना नेता बनाते रहे
माल हमरा सियासत उड़ाती रही
और हम ख़्वाब बैठे सजाते रहे
देश के नाम पर हम हमारा लहू
भेड़ियों को ही शायद पिलाते रहे
भूख का, रोग का रक्स होता रहा
हम हैं आज़ाद, हम गीत गाते रहे
देखिए नाच गाकर शहीदों को भी
हम अभी तक ग़ज़ब बरगलाते रहे
हम हैं ग़ाफ़िल तो क्यूँ देख लेते भला
आईने जो हक़ीक़त दिखाते रहे
-‘ग़ाफ़िल’
हम जिन्हें अपना नेता बनाते रहे
माल हमरा सियासत उड़ाती रही
और हम ख़्वाब बैठे सजाते रहे
देश के नाम पर हम हमारा लहू
भेड़ियों को ही शायद पिलाते रहे
भूख का, रोग का रक्स होता रहा
हम हैं आज़ाद, हम गीत गाते रहे
देखिए नाच गाकर शहीदों को भी
हम अभी तक ग़ज़ब बरगलाते रहे
हम हैं ग़ाफ़िल तो क्यूँ देख लेते भला
आईने जो हक़ीक़त दिखाते रहे
-‘ग़ाफ़िल’
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