अश्क बह जाय तो फिर ख़ूब मज़ा देता है
बात यह और है, औरों को रुला देता है
चाँद आँखों मे मेरे ख़्वाब नये रख जाता
और सूरज है मेरा ख़्वाब जला देता है
क़त्ल हो जाऊँ इशारा ही तेरा काफी था
तू तो हर बात में नश्तर ही चुभा देता है
वज़्न खीसे का मेरा और शराब की क़ीमत
देख, महबूब नज़र से ही पिला देता है
ये अदा भी क्या अदा है न समझ पाऊँ मैं
बात करता है वो, अहसान जता देता है
चूड़ियाँ चुभके हमेशा ही यही बतलायें
टूटता है जो कभी दर्द वो क्या देता है
-‘ग़ाफ़िल’
बात यह और है, औरों को रुला देता है
चाँद आँखों मे मेरे ख़्वाब नये रख जाता
और सूरज है मेरा ख़्वाब जला देता है
क़त्ल हो जाऊँ इशारा ही तेरा काफी था
तू तो हर बात में नश्तर ही चुभा देता है
वज़्न खीसे का मेरा और शराब की क़ीमत
देख, महबूब नज़र से ही पिला देता है
ये अदा भी क्या अदा है न समझ पाऊँ मैं
बात करता है वो, अहसान जता देता है
चूड़ियाँ चुभके हमेशा ही यही बतलायें
टूटता है जो कभी दर्द वो क्या देता है
-‘ग़ाफ़िल’
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत ग़ज़ल।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 21 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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