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न हो दिल में कसक तो राब्ता क्या
अगर दिल हों मिले तो फ़ासिला क्या
मुझे गुमसुम सा देखा पूछ बैठे
तिरा भी इश्क़ का चक्कर चला क्या
किसी के ख़्वाब में खो सा गया हूँ
इसे मैं मान बैठूँ हादिसा क्या
मिरी आँखों से आँसू जब गिरे तो
सभी पूछे कोई तिनका पड़ा क्या
बड़ी परहेज़गारी की थी शुह्रत
नशे में शेख़ जी हैं ये हुआ क्या
कई बच तो गये शमशीर से भी
नज़र की तीर से कोई बचा क्या
जो ज़ीनत थी तिरे घर की गयी अब
नशे की हाल में फिर ढूँढता क्या
यूँ ज़ेरे ख़ाक हो करके भी ग़ाफ़िल
हुआ अब वाक़ई तुझसे ज़ुदा क्या
-‘ग़ाफ़िल’
न हो दिल में कसक तो राब्ता क्या
अगर दिल हों मिले तो फ़ासिला क्या
मुझे गुमसुम सा देखा पूछ बैठे
तिरा भी इश्क़ का चक्कर चला क्या
किसी के ख़्वाब में खो सा गया हूँ
इसे मैं मान बैठूँ हादिसा क्या
मिरी आँखों से आँसू जब गिरे तो
सभी पूछे कोई तिनका पड़ा क्या
बड़ी परहेज़गारी की थी शुह्रत
नशे में शेख़ जी हैं ये हुआ क्या
कई बच तो गये शमशीर से भी
नज़र की तीर से कोई बचा क्या
जो ज़ीनत थी तिरे घर की गयी अब
नशे की हाल में फिर ढूँढता क्या
यूँ ज़ेरे ख़ाक हो करके भी ग़ाफ़िल
हुआ अब वाक़ई तुझसे ज़ुदा क्या
-‘ग़ाफ़िल’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-08-2015) को "भारत है गाँवों का देश" (चर्चा अंक-2062) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया शास्त्री जी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...