Monday, August 31, 2015

या फ़साना ही सुनाए बरगलाने के लिए

आपका आना है बस आना जताने के लिए
आप अब आते कहाँ हैं सिर्फ़ आने के लिए

फिर कोई इक गीत गाए जी जलाने के लिए
या फ़साना ही सुनाए बरगलाने के लिए

आशिक़ी के नाम पर उसने फ़क़त इतना कहा
क्या भला मैं ही मिला था आज़माने के लिए

इस क़दर रुस्वा हुआ हूँ मैं के अब इस शह्र में
याद करते हैं मुझे सब भूूल जाने के लिए

मान जाने से भला मुझको ख़ुशी क्यूँकर हो जब
मान जाना है किसी का रूठ जाने के लिए

होश आया तो मैं जाना मैकशी क्या चीज़ है
एक यह जुम्ला बहुत है होश आने के लिए

मैंने पूछा किस लिए यूँ हुस्न बे पर्दा हुआ
दफ्अतन बोला गया ग़ाफ़िल ज़माने के लिए

सोचता हूँ ग़म में तेरे हो गया मैख़ोर पर
और भी हिक़्मत तो होगी ग़म मिटाने के लिए

इक ज़माना था के होती थी क़वायद शामो शब
छत पे आएँ चाँद का दीदार पाने के लिए

काश हो जाता कहीं ऐसा के हर बंदिश को तोड़
फिर चला आता कोई मुझको सताने के लिए

बात अब जब हो रही है चाँद सूरज की यहाँ
कौन ग़ाफ़िल आएगा दीया जलाने के लिए

-‘ग़ाफ़िल’

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