तेरे कूचे में जब भी हम जाते हैं
राह के पत्थर से अक्सर टकराते है
ख़ामख़याली के बाइस ही पिटते सब
वर्ना याँ तो पत्थर पूजे जाते हैं
एक कमाए दस खाएं की आदत है
इसी लिए हम रिश्ते ख़ूब निभाते हैं
कम जोतो पर अधिक हेंगाओ के जैसे
हमको ढेरों सबक सिखाए जाते हैं
हुआ क़ाफ़िया तंग बहुत अपना यारो
मज़्बूरी में जश्ने शाम मनाते हैं
एक सुहागा सोने पर सा लगता है
हमको जब ग़ाफ़िल कह लोग बुलाते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
राह के पत्थर से अक्सर टकराते है
ख़ामख़याली के बाइस ही पिटते सब
वर्ना याँ तो पत्थर पूजे जाते हैं
एक कमाए दस खाएं की आदत है
इसी लिए हम रिश्ते ख़ूब निभाते हैं
कम जोतो पर अधिक हेंगाओ के जैसे
हमको ढेरों सबक सिखाए जाते हैं
हुआ क़ाफ़िया तंग बहुत अपना यारो
मज़्बूरी में जश्ने शाम मनाते हैं
एक सुहागा सोने पर सा लगता है
हमको जब ग़ाफ़िल कह लोग बुलाते हैं
-‘ग़ाफ़िल’
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