नहीं है पास पर देखा बहुत है
हमारा हुस्न से नाता बहुत है
निशाँ यूँ ही नहीं हैं रुख पे उसके
वो जज़्बातों से टकराता बहुत है
कोई तो गुल की पंखुड़ियाँ बिछा दे
वफ़ा की राह में काँटा बहुत है
ये सच है के अँधेरों की बनिस्बत
हमें लोगों ने भरमाया बहुत है
किसी ने घाव दिल पर दे दिया था
पसे मुद्दत भी वो रिसता बहुत है
मैं कैसे चाह कर उसको भुला दूँ
कभी वह भी हमें चाहा बहुत है
जो उलझी थीं लटें तूफ़ाँ में पहले
कोई रह रह के सुलझाता बहुत है
ये ग़ाफ़िल बे सबब शा'इर हुआ क्या?
यहाँ पर हुस्न की चर्चा बहुत है
-‘ग़ाफ़िल’
हमारा हुस्न से नाता बहुत है
निशाँ यूँ ही नहीं हैं रुख पे उसके
वो जज़्बातों से टकराता बहुत है
कोई तो गुल की पंखुड़ियाँ बिछा दे
वफ़ा की राह में काँटा बहुत है
ये सच है के अँधेरों की बनिस्बत
हमें लोगों ने भरमाया बहुत है
किसी ने घाव दिल पर दे दिया था
पसे मुद्दत भी वो रिसता बहुत है
मैं कैसे चाह कर उसको भुला दूँ
कभी वह भी हमें चाहा बहुत है
जो उलझी थीं लटें तूफ़ाँ में पहले
कोई रह रह के सुलझाता बहुत है
ये ग़ाफ़िल बे सबब शा'इर हुआ क्या?
यहाँ पर हुस्न की चर्चा बहुत है
-‘ग़ाफ़िल’
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