ठीक है, गुस्सा जताया कीजिए
पर कभी तो मुस्कुराया कीजिए
सोचिए मत क्यूँ सताया कीजिए
रब्त कुछ यूँ भी बढ़ाया कीजिए
जी तो लूँगा वैसे मैं तन्हा मगर
हो सके तो आया जाया कीजिए
चाँद कब निकलेगा है मालूम जब
वक़्त पर आँखें बिछाया कीजिए
हैं बहुत मगरूर ये पर्दानशीं
अब न इनसे लौ लगाया कीजिए
वस्ल की यह शब गुज़रती जा रही
रफ़्ता रफ़्ता दिल दुखाया कीजिए
अब नहीं है ख़ुद पे मेरा इख़्तियार
अब न मुझको आज़माया कीजिए
इश्क़ करने के सबब अपना बदन
कौन कहता है नुमाया कीजिए
फ़ित्रतन आशिक़ हूँ मैं सो मुझपे आप
और थोड़ा जुल्म ढाया कीजिए
खिल उठेगी शर्तिया मेरी ग़ज़ल
आप ग़ाफ़िल गुनगुनाया कीजिए
-‘ग़ाफ़िल’
पर कभी तो मुस्कुराया कीजिए
सोचिए मत क्यूँ सताया कीजिए
रब्त कुछ यूँ भी बढ़ाया कीजिए
जी तो लूँगा वैसे मैं तन्हा मगर
हो सके तो आया जाया कीजिए
चाँद कब निकलेगा है मालूम जब
वक़्त पर आँखें बिछाया कीजिए
हैं बहुत मगरूर ये पर्दानशीं
अब न इनसे लौ लगाया कीजिए
वस्ल की यह शब गुज़रती जा रही
रफ़्ता रफ़्ता दिल दुखाया कीजिए
अब नहीं है ख़ुद पे मेरा इख़्तियार
अब न मुझको आज़माया कीजिए
इश्क़ करने के सबब अपना बदन
कौन कहता है नुमाया कीजिए
फ़ित्रतन आशिक़ हूँ मैं सो मुझपे आप
और थोड़ा जुल्म ढाया कीजिए
खिल उठेगी शर्तिया मेरी ग़ज़ल
आप ग़ाफ़िल गुनगुनाया कीजिए
-‘ग़ाफ़िल’
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteअब नहीं है ख़ुद पे मेरा इख़्तियार
ReplyDeleteअब न मुझको आज़माया कीजिए
...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-09-2015) को "प्रबिसि नगर की जय सब काजा..." (चर्चा अंक-2104) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'