Tuesday, September 29, 2015

कोई अश्कों से धोए जा रहा रुख़सार जाने क्यूँ

दिखे इस तर्ह मेरी मौत का आसार जाने क्यूँ
पशेमाँ है किए पे ख़ुद के वह गद्दार जाने क्यूँ

बड़े बनते मुसन्निफ़ हैं कहो तो मौत लिख डालें
मगर वो लिख नहीं सकते हैं आखि़र प्यार, जाने क्यूँ

मेरी जानिब चले आते हैं सूरज चाँद तारे सब
न आते हैं कभी भी आप ही सरकार जाने क्यूँ

भले रश्‍कीं हो पर कोई सफ़र में साथ तो दे दे
हुआ जाए है अब तन्‌हा मेरा क़िरदार जाने क्यूँ

सभी तो जानते हैं हुस्न नज़रों की अमानत है
मगर इसके भी हैं हर सिम्त पहरेदार जाने क्यूँ

उड़ाकर गर्द ख़ुद ही, देखिए ग़ाफ़िल जी कमज़र्फ़ी
कोई अश्कों से धोए जा रहा रुख़सार जाने क्यूँ

-‘ग़ाफ़िल’

5 comments:

  1. बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-09-2015) को "हिंदी में लिखना हुआ आसान" (चर्चा अंक-2114) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. मेरी जानिब चले आते हैं सूरज चाँद तारे सब
    नहीं आते कभी हैं आप ही सरकार जाने क्यूँ....बहुत खूबसूरत गजल

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  4. बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ ..

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