यार इस मिस्ल ज़िंदगानी है
जूँ हक़ीक़त नहीं कहानी है
ख़ूँ रगों में न अब रवाँ होता
आब की ही फ़क़त रवानी है
है इज़ाफ़त जो दिल की धड़कन में
आपकी ही तो मिह्रबानी है
आज मैं तर्के मुहब्बत चाहूँ
गो के यह मह्ज़ बदग़ुमानी है
इक समन्दर के तिश्नगी की बात
एक दरिया से मैंने जानी है
आईने टूटते रहें क्या ग़म
आपको तो नज़र लगानी है
ठोकरों पर है ज़िन्दगी अपनी
तीर की नोक पर जवानी है
याँ तो ग़ाफ़िल न अब मिले शायद
ये ग़ज़ल आखि़री निशानी है
-‘ग़ाफ़िल’
जूँ हक़ीक़त नहीं कहानी है
ख़ूँ रगों में न अब रवाँ होता
आब की ही फ़क़त रवानी है
है इज़ाफ़त जो दिल की धड़कन में
आपकी ही तो मिह्रबानी है
आज मैं तर्के मुहब्बत चाहूँ
गो के यह मह्ज़ बदग़ुमानी है
इक समन्दर के तिश्नगी की बात
एक दरिया से मैंने जानी है
आईने टूटते रहें क्या ग़म
आपको तो नज़र लगानी है
ठोकरों पर है ज़िन्दगी अपनी
तीर की नोक पर जवानी है
याँ तो ग़ाफ़िल न अब मिले शायद
ये ग़ज़ल आखि़री निशानी है
-‘ग़ाफ़िल’
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