अजी हम कभी ग़म के मारे न होते
अगर दूसरों के सहारे न होते
नदी मस्त बलखाती चलती नहीं गर
उसे थामने को किनारे न होते
फ़लक़ का ज़मीं से जो रिश्ता न होता
सितारे भी रौशन हमारे न होते
भला एक लम्हा गुज़रता तो यूँ जब
मेरे पास शिक़्वे तुम्हारे न होते
कभी भी मुहब्बत न परवान चढ़ती
जो हम जीत कर दाँव हारे न होते
ऐ ग़ाफ़िल ये मुमक़िन तो होता के हरसू
सिसकते हुए से नज़ारे न होते
-‘ग़ाफ़िल’
अगर दूसरों के सहारे न होते
नदी मस्त बलखाती चलती नहीं गर
उसे थामने को किनारे न होते
फ़लक़ का ज़मीं से जो रिश्ता न होता
सितारे भी रौशन हमारे न होते
भला एक लम्हा गुज़रता तो यूँ जब
मेरे पास शिक़्वे तुम्हारे न होते
कभी भी मुहब्बत न परवान चढ़ती
जो हम जीत कर दाँव हारे न होते
ऐ ग़ाफ़िल ये मुमक़िन तो होता के हरसू
सिसकते हुए से नज़ारे न होते
-‘ग़ाफ़िल’
भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार
ReplyDeleteकुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.