एक ग़ज़ल-
मतला-
लौट जो आए तिरे दरबार से
मत समझना हम हुए लाचार से
हुस्ने मतला-
नाव तो हम खे रहे पतवार से
क्या बचा पाएँगे इसको ज्वार से
अश्आर-
कोशिशों ने कर दिया मज़्बूत यूँ
जूँ डिगे पत्थर न जल की धार से
सुह्बते गुल की है ख़्वाहिश पर ये क्या
लोग काफी डर रहे हैं ख़ार से
वक़्त की रफ़्तार पकड़ो साहिबान
क्यूँ यहाँ रोए पड़े बीमार से
क्यूँ कहें किससे कहें जब आप हम
कर लिए रिश्ते सभी व्यापार-से
यह रवायत क्या कि बस गुलफ़ाम के
हम हुए जाते हैं ख़िदमतगार-से
बेतक़ल्लुफ़ बात तो होती रही
गो कि सब थे बेमुरव्वत यार से
आदमी हर आदमी से दूर है
क्या भला उम्मीद हो परिवार से
चाँद है पीपल की टहनी पर टँगा
क्यूँ नहीं छत पर उतारा प्यार से
लुत्फ़ तो आए है तब ही इश्क़ में
जब हुई शुरुआत हो तकरार से
गर इसी रफ़्तार से चलते रहे
हम बहुत नज़्दीक होंगे दार से
मक़्ता-
एक ग़ाफ़िल हो परीशाँ क्यूँ भला
जब सभी बेख़ौफ़ हैं मझधार से
-‘ग़ाफ़िल’
मतला-
लौट जो आए तिरे दरबार से
मत समझना हम हुए लाचार से
हुस्ने मतला-
नाव तो हम खे रहे पतवार से
क्या बचा पाएँगे इसको ज्वार से
अश्आर-
कोशिशों ने कर दिया मज़्बूत यूँ
जूँ डिगे पत्थर न जल की धार से
सुह्बते गुल की है ख़्वाहिश पर ये क्या
लोग काफी डर रहे हैं ख़ार से
वक़्त की रफ़्तार पकड़ो साहिबान
क्यूँ यहाँ रोए पड़े बीमार से
क्यूँ कहें किससे कहें जब आप हम
कर लिए रिश्ते सभी व्यापार-से
यह रवायत क्या कि बस गुलफ़ाम के
हम हुए जाते हैं ख़िदमतगार-से
बेतक़ल्लुफ़ बात तो होती रही
गो कि सब थे बेमुरव्वत यार से
आदमी हर आदमी से दूर है
क्या भला उम्मीद हो परिवार से
चाँद है पीपल की टहनी पर टँगा
क्यूँ नहीं छत पर उतारा प्यार से
लुत्फ़ तो आए है तब ही इश्क़ में
जब हुई शुरुआत हो तकरार से
गर इसी रफ़्तार से चलते रहे
हम बहुत नज़्दीक होंगे दार से
मक़्ता-
एक ग़ाफ़िल हो परीशाँ क्यूँ भला
जब सभी बेख़ौफ़ हैं मझधार से
-‘ग़ाफ़िल’
हर एक शेर लाजवाब
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-09-2015) को "डिजिटल इंडिया की दीवानगी मुबारक" (चर्चा अंक-2113) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हर एक शेर लाजवाब
ReplyDeleteumda
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