शम्अ की जानिब पतिंगे गर गये
लौटकर वापिस न आए मर गये
कुछ तो है पोशीदगी में बरहना
जो उसी के सिम्त पर्दादर गये
जब कभी भी प्यास जागी तो ख़याल
क्यूँ शराबे लब पे ही अक़्सर गये
मैं बताऊँ क्यूँ हुआ जी का ज़रर
वह गयी, नख़रे गये, तेवर गये
हादिसों की फ़िक़्र ऐसी या ख़ुदा?
जो न हम अब तक बुलंदी पर गये
तीर नज़रों का उसी से था चला
और हर इल्ज़ाम मेरे सर गये
एक क़त्आ मक़्ते के साथ-
दफ़्अतन पहुँचा तो मुझको देखकर
नोचने वाले कली को, डर गये
यूँ लगा, दिल ने कहा ग़ाफ़िल जी आप
इक ज़ुरूरी काम शायद कर गये
(पोशीदगी=छिपाव, बरहना=नग्न, पर्दादर=निन्दक, ज़रर=नुक़्सान, दफ़्अतन=यकबयक)
-‘ग़ाफ़िल’
लौटकर वापिस न आए मर गये
कुछ तो है पोशीदगी में बरहना
जो उसी के सिम्त पर्दादर गये
जब कभी भी प्यास जागी तो ख़याल
क्यूँ शराबे लब पे ही अक़्सर गये
मैं बताऊँ क्यूँ हुआ जी का ज़रर
वह गयी, नख़रे गये, तेवर गये
हादिसों की फ़िक़्र ऐसी या ख़ुदा?
जो न हम अब तक बुलंदी पर गये
तीर नज़रों का उसी से था चला
और हर इल्ज़ाम मेरे सर गये
एक क़त्आ मक़्ते के साथ-
दफ़्अतन पहुँचा तो मुझको देखकर
नोचने वाले कली को, डर गये
यूँ लगा, दिल ने कहा ग़ाफ़िल जी आप
इक ज़ुरूरी काम शायद कर गये
(पोशीदगी=छिपाव, बरहना=नग्न, पर्दादर=निन्दक, ज़रर=नुक़्सान, दफ़्अतन=यकबयक)
-‘ग़ाफ़िल’
शम्अ की जानिब पतिंगे गर गये
ReplyDeleteलौटकर वापिस न आए मर गये
सभी शेर बेहतरीन ...:)
आभार शास्त्री जी
ReplyDeleteशुक्रिया सुनीता जी
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